A small moral story.
बादशाह की बेटी की शादी थी।
बादशाह ने शहर के लोगो की दावत की और लोगों के लिए एक शानदार पार्टी रखी।
सभी लोग पार्टी में पहोचे।
बादशाह आलिमों (religious scholar) की बहोत इज़्ज़त करता था इस लिए उसने सभी आलिमो को royal invitition दिया।
पार्टी में एक आलिम साहब भी गए।
Royal party थी इस लिए बहोत अच्छा decoration
था।
सब लोग अपना बढ़िया सूट पहन कर आये थे।
लोगों के लिए बहोत अच्छा खाना बना हुआ था।
लोगो ने पार्टी को बहोत enjoy किया।
पार्टी खत्म होने के बाद आलिम साहब अपने घर वापस गए और घर पर जाने के बाद उन्होंने अपनी wife से कहा के मुझे खाना दो!
Wife को बहोत अजीब लगा उसने पूछा "आप तो royal party में गए थे,क्या वहाँ खाना अच्छा नहीं था?"
तो आलिम साहब ने कहा के खाना तो बहोत ही बढ़िया था मगर मैं बादशाह को impress करना चाहता था और उसे ये दिखाना चाहता था के मैं बहोत बड़ा अल्लाह वाला हूँ ,संत हूँ,महात्मा हूँ इस लिए मैंने बिलकुल थोड़ा सा खाना खाया और बहोत देर तक नमाज़ पढता रहा....
Wife समझ गयी और उसने कहा ठीक है मैं आपको खाना देती हूं आप खाना खा लो और खाने के बाद नमाज़ भी पढ़ लो!
आलिम साहब ने पूछा के नमाज़ क्यों पढू, मैं तो नमाज़ पढ़ चूका हूँ!
Wife बोली के आप ने खाना बादशा को दिखाने के लिए खाया तो आपका पेट नहीं भरा और आपने नमाज़ भी बादशाह लिए ही पढ़ी है!
नमाज़ बादशाह के लिए नहीं खुदा के लिए पढ़ी जाती है इसलिए आप फिर से नमाज़ पढ़ लीजिये।
दोस्तों ये ज़रूरी है के हम अपनी ज़िन्दगी में सही रास्ता चुने लेकिन इससे भी ज़्यादा ज़रूरी ये है के हमारा मक़सद सही हो।
तरीका गलत हो तो चलेगा मगर मक़सद हमेशा सही होना चाहिए।
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ये story आप को कैसी लगी?
Comment करके ज़रूर बताइये...
अगर स्टोरी आपको अच्छी लगे तो आपके लिए इसका second part भी post करुगा।
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Reference: (बहोत साल पहले किसी बुक में ये कहानी पढ़ी थी,लेखक का नाम याद नहीं।)
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